जेस्टेशनल डायबिटीज से घबराएं नहीं, बस करें ये काम
डायबिटीज की बीमारी से अब कोई भी परिवार अछूता नहीं है. पिछले कुछ वर्षों से डायबिटीज ने महिलाओं पर भी अपना असर छोड़ना शुरू किया है. डायबिटीज अब पुजेस्टेशनल डायबिटीज से घबराएं नहीं, बस करें ये कामरुषों के अलावा महिलाओं और बच्चों की भी पाया जाने लगा है.
महिलाओं में यह आम तौर पर 35 साल के ऊपर में पाया जाता है. हालांकि, एक अवस्था ऐसी भी होती है, जिसे हम जेस्टेशनल डायबिटीज (GDM) या गर्भावस्था के दौरान होने वाला डायबिटीज कहते हैं. गर्भवती महिलाओं में 24 सप्ताह से 28 सप्ताह के बीच में हाई ब्लड शूगर के रूप में होनेवाला जेस्टेशनल डायबिटीज एक टेम्पररी कंडीशन है, जो जो प्रसव के बाद समाप्त हो जाता है. जेस्टेशनल डायबिटीज होने का प्रमुख कारण महिलाओं के शरीर में इंसुलिन हॉर्मोंस का असंतुलन होता है. गर्भावस्था में महिलाओं के शरीर में बहुत तरह के हॉर्मोंस महिला व बच्चे दोनों के विकास के लिए ही बनते हैं, जो इंसुलिन को सही तरीके से काम नहीं करने देते हैं. इसकी वजह से ब्लड शूगर बढ़ जाता है. इसे ही जेस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं. जेस्टेशनल डायबिटीज में महिला का ब्लड शूगर खाली पेट 94 mg/dL के नीचे होना चाहिए एवं भोजन के बाद 120 mg/dL के नीचे होना चाहिए.
आमतौर पर 28-32वें हफ्ते में किये गये टेस्ट में गर्भवती महिला के डायबेटिक होने का पता लग सकता है. ऐसे में हर गर्भवती थोड़ी चिंतित हो सकती है. यदि प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में किये गये टेस्ट में आपके डायबेटिक होने की पुष्टि हो जाती है, तो सामान्य रूप से यह प्रसव के बाद ठीक भी हो जाती है. लेकिन फिर भी आप पौष्टिक आहार के साथ ही थोड़ी सावधानी जरूर बरतें. पहली बार प्रेग्नेंसी के दौरान डायबेटिक होने पर आपको आने वाले समय में विभिन्न प्रकार की परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. अगर पहली बार के गर्भधारण में आपको डायबिटीज की परेशानी हो चुकी है, तो दूसरी बार भी यह परेशानी हो सकती है. इसलिए प्रेग्नेंसी के दौरान स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए दूसरी बार गर्भधारण करने से पहले अपनी डॉक्टर से जरूर मिलें.
जेस्टेशनल डायबिटीज का इलाज :
जेस्टेशनल डायबिटीज का इलाज हम इंसुलिन द्वारा करते हैं, इसमें महिला को अपनी जरूरत के हिसाब से दिन में दो से तीन बार इंसुलिन लेना पड़ता है और अपने ब्लड शूगर को कंट्रोल में रखना पड़ता है. ब्लड शूगर कंट्रोल नहीं होने पर बच्चों में अनेक प्रकार की विकृतियां हो सकती हैं, जैसे बच्चे का वजन अत्यधिक बढ़ना, बच्चे के हार्ट में परेशानी, बच्चे का सही से ग्रोथ नहीं होना आदि. बढ़े हुए ब्लड शूगर से गर्भावस्था के दौरान एवं डिलिवरी के वक्त भी मां को अनेक प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं. जेस्टेशनल डायबिटीज के इलाज का एक प्रमुख स्तंभ है मरीज का खानपान, जोकि बिल्कुल नियमित एवं संतुलित होना चाहिए. मरीज को वसायुक्त भोजन एवं हाई कैलोरी फूड्स से बचना चाहिए. गुड़, चीनी, शहद अादि का उपयोग सीमित रूप से करना चाहिए. फलों के जूस के जूस के बजाय फल खाएं. सुबह के समय गायनोकोलॉजिस्ट की सलाह से करीब 60 मिनट तक टहलना चाहिए.
बाद में डायबिटीज का खतरा : जैसा कि पहले बताया गया है कि जेस्टेशनल डायबिटीज डिलिवरी के तुरंत बाद समाप्त हो जाता है, पर ऐसी महिलाओं को आगे चलके ब्लड शूगर होने की आशंका 80 फीसदी तक होती है. ऐसी महिलाओं को अपने चिकित्सक की नियमित संपर्क में रहना चाहिए. समय-समय पर टेस्ट कराकर चिकित्सक से सलाह लेने से वे खुद को लंबे समय तक इस बीमारी की चपेट में आने से बच सकती हैं. इसके लिए वजन को नियंत्रित रखना होगा. खान-पान संयमित एवं संतुलित होना चाहिए. योग और अन्य एक्सरसाइज एवं तरह-तरह के फिजिकल एक्टिविटी में भाग लेना चाहिए. गर्भावस्था में तनाव से दूर रहें. मधुमेह की परेशानी से भी घबराएं नहीं और अपनी जीवनशैली में थोड़ा बदलाव लाएं.