Tuesday, November 26, 2024
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एक फलसफ़ा

बस्ती बसने से पहले ही उजड़ गई!
सोचते -सोचते कब उम्र गुजर गई!!

काली रात तो सबक सीखा के चली गई!
सुबह तो ज़माने की फलसफा बता गई!!

मकसद के लिए जीना ही ज़िंदगी हो गई!
राह की सिलवटे ही मंजिल तक ले गई!!

नसीब से नहीं पसीने से रोटी मिल गई!
मेहनत क्या चीज होती है ये सीखा गई!!

अपने-पराये के खेल में इंसानियत छूट गई !
मोल-भाव के बाजार कीमत मिल नहीं पाई !!

!!शिवपूजन!!