क्या आप जानतें हैं हवन में हर मंत्र के साथ क्यों बोला जाता है ‘स्वाहा’ ?
यदि आपका संबंध हिंदू धर्म से है तो आपने कभी ना कभी हवन जरूर किया होगा. हिंदू धर्म में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं जिसमें सबसे पवित्र अनुष्ठान हवन को बताया गया है. शादी हो या कोई भी धार्मिक अनुष्ठान, लोगों को अपने हवन करते जरूर देखा होगा.
हवन के दौरान लोग मंत्रों के जाप के साथ स्वाहा कहकर ही हवन सामग्री, अर्घ्य या भोग भगवान को अर्पित करने का काम करते हैं. क्या आपने कभी यह जानने का प्रयास किया है कि हर मंत्र के साथ स्वाहा क्यों बोला जाता हैं, यदि नहीं तो आइए हम आपको बताते हैं इसके पीछे की बात…
सबसे पहले स्वाहा का अर्थ जान लें. स्वाहा का मतलब है, सही रीति से पहुंचाना यानी किसी भी वस्तु को उसके प्रिय तक सुरक्षित और सही तरीके से पहुंचाना. हिंदू धार्मिक मान्यताओं की मानें तो, ‘स्वाहा’ अग्नि देव की पत्नी हैं. इसलिए हवन में हर मंत्र के बाद इनका उच्चारण मुख से निकलता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार स्वाहा प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं और उनका विवाह अग्नि देव के साथ हुआ था.
मान्यताओं के अनुसार कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जाता है, जब तक कि हवन का ग्रहण देवता न कर लें, लेकिन देवता यह ग्रहण तभी कर सकते हैं जब अग्नि के द्वारा और स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए. अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हविष्य ग्रहण करते हैं और उनके माध्यम से यही हविष्य आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है.
स्वाहा को लेकर एक अन्य कथा भी लोगों के बीच बहुत प्रचलित है. इस कथा के मुताबिक स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थी, जिसका विवाह अग्नि के साथ था. स्वाहा को भगवान श्रीकृष्ण ने खुद यह वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे.