उमंग
आओ फिर से नए सपनों की, शुरुवात करते हैं।
जो उम्मीद पहले कही थीं, आओ उसको पूरा करते हैं
ठहर गई थी जो कलम, रुक गई थीं जो पुरानी दास्तान
थम गया था मन का प्रवाह, बंद हो गई थी विचारों की दुकान।
लौटी जीवन शक्ति अब फिर से, लेकर नई उमंग , जोश इस बार ।
निकलेगा “अनु ” बन बन विचारों का काफिला।
शब्दों में फिर से इस बार ..
काव्य : हर्षिता कौशिक “अनु”
Hundingersky