सांसों से जुड़े रोगों का खतरा बढ़ा देता है सर्दियों का मौसम, जानें कैसे
सर्दियों में श्वसन तंत्र से संबंधित समस्याओं के मामले कई गुना बढ़ जाते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इसके चार प्रमुख कारण हैं- पहला, जब तापमान में तेज गिरावट आती है, तब श्वास नलिकाएं थोड़ी सिकुड़ जाती हैं, जिससे सांस लेने में परेशानी होती है. दूसरा, ठंडी और सूखी हवा बीमार फेफड़ों को ही नहीं, स्वस्थ्य फेफड़ों को भी नुकसान पहुंचाती है. तीसरा, श्वसन तंत्र को संक्रमित करने वाले वायरस और बैक्टीरिया सर्दियों में अधिक सक्रिय रहते हैं, क्योंकि यह मौसम उनके लिए अधिक अनुकूल होता है. चौथा, सर्दियों के मौसम में प्रदूषण का स्तर बाकी दोनों मौसमों की तुलना में अधिक होता है, ऐसे में जब प्रदूषित वायु श्वास नलिकाओं और फेफड़ों के सीधे संपर्क में आती है, तो उनके ऊतकों की कोशिकाओं के डीएनए को नुकसान पहुंचता है, जिससे वे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं.
कौन-सी समस्याएं कर सकती हैं परेशान
तापमान में कमी और ठंडी हवाएं श्वसन तंत्र से संबंधित कई समस्याओं का खतरा बढ़ा देती हैं. डॉक्टरों की मानें तो इस मौसम में अस्पताल आने वाले सांस के रोगियों की संख्या में 25-30 प्रतिशत तक की वृद्धि हो जाती है.
गले की खराश : गले की खराश को चिकित्सीय भाषा में फैरिंजाइटिस कहते हैं. यह संक्रमण वायरस के कारण होता है. ओरोफेरिंग्स, जीभ के ठीक पीछे स्थित होता है. जब यह सूज जाता है या सूजकर लाल हो जाता है, तो उसे गले की खराश कहते हैं. इससे गले में कांटे चुभने और दर्द जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. इसकी वजह से भोजन को निगलने में भी परेशानी होती है. सर्दी और खांसी इस समस्या को और बढ़ा देते हैं. कई लोगों में गले की खराश इस बात की चेतावनी होती है कि आप पर सर्दी और फ्लू का हमला होने वाला है. सौ से अधिक वायरस हैं, जो सर्दी, खांसी और गले की खराश का कारण बन सकते हैं.
सर्दी, खांसी और फ्लू : सर्दी, खांसी श्वसन मार्ग के ऊपरी भाग (नाक और गले) का संक्रमण है, जो कई वायरसों के कारण होता है. 7 से 10 दिनों में इसके लक्षण अपने आप ठीक हो जाते हैं. अगर लक्षण इससे अधिक समय तक बने रहें और बुखार भी आये तो समझिए आप फ्लू की चपेट में आ गये हैं. फ्लू संक्रामक होता है, इसलिए अगर आपको फ्लू हो गया हो तो लोगों से दूर रहें, ताकि वे संक्रमण की चपेट में न आएं. अगर आप सर्दियों में हर साल फ्लू की चपेट में आते हैं तो वैक्सिनेशन करा लें.
इन्फ्लुएंजा : इन्फ्लुएंजा एक वायरस से होने वाला संक्रमण है, जो श्वसन तंत्र पर आक्रमण करता है, विशेषकर नाक, गले और फेफड़ों पर. इन्फ्लुएंजा, एक तरह का फ्लू ही है, लेकिन यह स्टमक फ्लू से अलग होता है, जो डायरिया और उल्टी होने का कारण बनता है.
लैरिन्जाइटिस : लैरिन्जाइटिस, लैरिंक्स की सूजन है, इसमें वोकल कार्ड सूज जाती है और उसका आकार बदल जाता है. लैरिंक्स को वॉइस बॉक्स भी कहते हैं, इसके कारण हम बोलते, चिल्लाते, फुसफुसाते और गाते हैं. यह भोजन और तरल पदार्थों को फेफड़ों में जाने से रोकता है. लैरिन्जाइटिस के कारण आवाज बैठ जाती है. कई बार लैरिंजाइटिस होने के बाद, श्वसन मार्ग के ऊपरी भाग का संक्रमण हो जाता है, जो सर्दियों के मौसम में बहुत सामान्य है.
ब्रोंकाइटिस : ब्रोंकाइटिस, ब्रोंकियल ट्यूब यानी वायु को फेफड़ों तक ले जाने वाली नली की सूजन और जलन है. इसमें म्युकस का निर्माण भी अधिक होता है, जिससे कफ बनता है. ब्रोंकाइटिस के अधिकतर मामले वायरस के कारण होता है, लेकिन कई बार बैक्टीरिया भी इस संक्रमण का कारण बन जाते हैं. ब्रोंकाइटिस दो प्रकार का होता है : एक्यूट ब्रोंकाइटिस और क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस. एक्यूट ब्रोंकाइटिस, 2 से 3 सप्ताह में ठीक हो जाता है. क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, लंबे समय तक रहता है और एक बार ठीक होने के बाद दोबारा होने का खतरा अधिक होता है. ब्रोंकाइटिस, उन लोगों को अधिक होता है, जो धूम्रपान करते हैं. जिन्हें अस्थमा, सीओपीडी, न्यूमोनिया या फेफड़ों से संबंधित दूसरी समस्याएं होती हैं. इसमें सांस लेने में दिक्कत होने के कारण इन्हेलर की जरूरत भी पड़ सकती है, इसलिए कुछ लोगों को गलतफहमी होती है कि उन्हें अस्थमा हो गया है, लेकिन दवाइयों से इसे 5-10 दिन में ठीक किया जा सकता है.
न्यूमोनिया : न्यूमोनिया फेफड़ों का संक्रमण है. अक्सर श्वास मार्ग के उपरी हिस्से नाक और गले के संक्रमण से इसकी आशंका बढ़ जाती है. इससे फेफड़ों में बलगम जम जाता है और सांस लेने में कठिनाई होती है. इसमें सर्दी, खांसी, कफ के साथ बुखार भी आता है. न्यूमोनिया जानलेवा भी हो सकता है. वायरस, बैक्टीरिया या फफूंद इस संक्रमण का कारण बन सकते हैं. पोषक भोजन की कमी, भीड़ वाली जगह में अधिक समय गुजारना इसके प्रमुख कारण है. धूम्रपान से भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. बच्चों और बुजुर्गों में इसके लक्षण अधिक गंभीर होते हैं, क्योंकि उनका रोग प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होता है.
अस्थमा अटैक : सर्द हवाएं अस्थमा अटैक को ट्रिगर कर सकती हैं. सर्दियों में सांस की नलियां सिकुड़ जाती हैं, ऐसे में उन्हें सांस लेने में काफी परेशानी होती है. तापमान में कमी और ठंडी हवाएं सर्दी-जुकाम की आशंका बढ़ा देती हैं, अगर इसका समय रहते इलाज न किया जाये तो अस्थमा के अटैक का खतरा बढ़ जाता है. सर्दियों में अपने शरीर को पूरी तरह ढंककर रखें. ठंडी हवा, धूल या नमी से बचकर अस्थमा अटैक से बचा जा सकता है.