मेरी रद्दी की दूकान (Poem)
है नोटों की दूकान,
नोट भी कागज का , रद्दी भी कागज का
नोट भी कागज का , रद्दी भी कागज का
उन्हें नोटों में गिना , हमें रद्दी में गिन लिया
हमने अपनी रद्दी की दूकान पे ताला ही लगा दिया
हमने अपनी रद्दी की दूकान पे ताला ही लगा दिया
तभी पीछे से आवाज आई लिफाफा बनाने वाले की
उसने मेरी रद्दी को नोटों में बदल दिया
आज फिर से रद्दी को नोटों से बड़ा कर दिया
दोस्त दुश्मन (Poem)
किसी ने कहा तुम बहुत कड़वे हो,
हमने उनके हाथों में चाय का भगोना थमा दिया।
किसी ने कहा तुम बहुत कड़वे हो ,
हमने उनके हाथों में चाय का भगोना थमा दिया।
वो झट चल पड़े चाय को छानने के लिए ,
वो झट चल पड़े चाय को छानने के लिए।
हमने हंस के जवाब दिया, जो दोस्त होगा वो मीठी चाय बनकर छान जाएगा।
जो दुश्मन होगा वो पट्टी बन ऊपर ही ठहर जाएगा।
काव्य : हर्षिता कौशिक “अनु”